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मानव तेरी कैसी श्रद्धा , क्यों करता है, ऐसी भक्ति । प्रकृति का नित हास करके, बढ़ा रहा तू अपनी शक्ति।

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 पर समर्पित पंक्तियाँ...   मानव  तेरी   कैसी  श्रद्धा ,                  क्यों  करता  है, ऐसी भक्ति । प्रकृति का नित हास करके,                  बढ़ा रहा तू अपनी शक्ति। प्रकृति होती है मनभावन,                   प्रकृति से मिलता है जीवन। प्रकृति को नित प्रेम देकर,                   छोड़ दे अब तो लोभ प्रवृत्ति l   अपना बस्तर पर मुक्तक..  सूखे मन  को करता है तर l  सदा  बहाए नदियाँ  निर्झर l  सच्चे यहाँ के सब नर नारी, खुशियाँ देता अपना बस्तर l